वो बेवफा थे… बेवफा न होते तो आ जाते।
गर दरमिया वाले न बेहकाते... तो आ जाते।
मुद्दते हुई हैं बूत-इ-खुदसर को समझाते, पिघलकर मोम हो जाते... गर पत्थर को समझाते|
वो आएं क्यों जब शिरकत से गुज़रती हैं उनकी रातें, गर तनहाई से घबराते... तो आ जाते|
गर दरमिया वाले न बेहकाते... तो आ जाते।
मुद्दते हुई हैं बूत-इ-खुदसर को समझाते, पिघलकर मोम हो जाते... गर पत्थर को समझाते|
वो आएं क्यों जब शिरकत से गुज़रती हैं उनकी रातें, गर तनहाई से घबराते... तो आ जाते|
एक दिन जब वो मिले,
हमने पुछा
कहाँ गयीं आपकी वो कसमें?
वो मुस्कुराकर बोले... गर सच्ची कसमें खाते... तो आ जाते!