वैसे तो अज़ाब के सौदागरों के चर्चे आम है यहा
किसे पता मुकम्मिल हो सर किस फरियाद को…
ज़हन मैं हिरास की इंतेहा जो जानना चाहो
रुसवाई का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…
वैसे तो कतरा कतरा लम्हे काटने के नही हम क़ायल
गुलों के खिलने का वक़्त तो दो रियाध को…
पर किष्तो मैं बेबुनियाद जन्नत बनते जो देखना चाहो
मोहोब्बत का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…
वैसे तो फ़ैसलों को उमीद की बाएसकी की ना इक़तेज़ा
पर कमज़ोरी कह कर बदनाम तो ना करो मुराद को…
किसी रोशन जहाँ मैं सियाह की आमद जो देखना चाहो
अपनी माशूक़ के जवाब का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…
किसे पता मुकम्मिल हो सर किस फरियाद को…
ज़हन मैं हिरास की इंतेहा जो जानना चाहो
रुसवाई का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…
वैसे तो कतरा कतरा लम्हे काटने के नही हम क़ायल
गुलों के खिलने का वक़्त तो दो रियाध को…
पर किष्तो मैं बेबुनियाद जन्नत बनते जो देखना चाहो
मोहोब्बत का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…
वैसे तो फ़ैसलों को उमीद की बाएसकी की ना इक़तेज़ा
पर कमज़ोरी कह कर बदनाम तो ना करो मुराद को…
किसी रोशन जहाँ मैं सियाह की आमद जो देखना चाहो
अपनी माशूक़ के जवाब का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…
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