Tuesday, November 25, 2014

तो आ जाते!

वो बेवफा थे… बेवफा न होते तो आ जाते।
गर दरमिया वाले न बेहकाते... तो आ जाते।
मुद्दते हुई हैं बूत-इ-खुदसर को समझाते, पिघलकर मोम हो जाते... गर पत्थर को समझाते|
वो आएं क्यों जब शिरकत से गुज़रती हैं उनकी रातें, गर तनहाई से घबराते... तो आ जाते|
एक दिन जब वो मिले, 
हमने पुछा 
कहाँ गयीं आपकी वो कसमें?
वो मुस्कुराकर बोले... गर सच्ची कसमें खाते... तो आ जाते!

Saturday, April 12, 2014

इनाम दस हजार

वैसे तो अज़ाब के सौदागरों के चर्चे आम है यहा
किसे पता मुकम्मिल हो सर किस फरियाद को…
ज़हन मैं हिरास की इंतेहा जो जानना चाहो
रुसवाई का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…

वैसे तो कतरा कतरा लम्हे काटने के नही हम क़ायल
गुलों के खिलने का वक़्त तो दो रियाध को…
पर किष्तो मैं बेबुनियाद जन्नत बनते जो देखना चाहो
मोहोब्बत का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…

वैसे तो फ़ैसलों को उमीद की बाएसकी की ना इक़तेज़ा
पर कमज़ोरी कह कर बदनाम तो ना करो मुराद को…
किसी रोशन जहाँ मैं सियाह की आमद जो देखना चाहो
अपनी माशूक़ के जवाब का इंतेज़ार करते देखो इस फरहद को…